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बहारों का सोग (en Hindi)
मजीद अ
(Autor)
·
Redgrab Books Pvt Ltd
· Tapa Blanda
बहारों का सोग (en Hindi) - मजीद अ
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Reseña del libro "बहारों का सोग (en Hindi)"
मजीद अमजद का शुमार उन शो'रा में होता है जिन्होंने ग़ज़लिया तहज़ीब की मदद से शख़्सियत की इस बातनी सिफ़त को दरयाफ़्त किया है जो ख़ारजी दबाव के बा-वजूद शिकस्तगी की मिसाल नहीं बनती। उन्होंने उसी शय को जो उनके लिए एक क़ीमती असासे की हैसियत रखती है, ग़ज़ल के सजाने में इस्तेमाल की है। उनके ग़ज़ल में मौज़ूई ईजाद की जो ख़ूबियाँ दिखाई देती है वो रिवायत की पासदारी और नए तक़ाज़ों की इज़्तियारी रविश का नतीजा हैं। किसी एक से इंहिराफ़ करके शाइरी फ़िक्र जिला नहीं पाती, और न ख़याल की ग़ैर-मरई हालात मरई बना सकती है क्योंकि बग़ैर किसी वसीले के लफ़्ज़ की तख़लीक़ी तवानाई न तो तरकीबों से तशकील में मुआविन हो सकती है और न इस्तिआरों को जन्म दे सकती है। इसीलिए उन्होंने फ़िक्रो-ख़याल की आराइशी खु़सूसियात को भी बईद-अज़-क़यास होने नहीं दिया और न किसी ऐसे ख़याल को नज़्म किया जो मरई हो कर भी ग़ैर-मरई मालूम हो। जब तक शे'र में इंसानी सरिश्त की दमक न पैदा हो वो शेर, शे'र नहीं बन सकता। लफ़्ज़ों के जामिद मजमूए' को शेर नहीं कहा जा सकता। मजीद अमजद की ग़ज़लों में तहय्युर-ख़ेज़ी, मासूमियत, सुबुक-रुई, नर्मी, भिची-भिची ख़्वाहिश और सहमी-सहमी सी कसक मिलती है। इन सबका मजमूई तअस्सुर वो रसमसाता हुआ दर्द है जो उसकी ज़िंदगी के आ
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El libro está escrito en Hindi.
La encuadernación de esta edición es Tapa Blanda.
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